Thursday, November 3, 2016

अपनों के साथ होती हैं खुशियाँ दोगुनी


     देवर्षि नारद जी के मुख से यह सुनने के बाद कि आपकी पुत्री के भाग्य में तो भगवान शिव से विवाह का योग है। पर्वतराज हिमवंत अपनी पुत्री पार्वती को लेकर शिव के पास गए और आग्रह किया कि वे उसे अपनी सेवा का अवसर दें। शिव ने उनका आग्रह स्वीकार कर लिया। और पार्वती उनकी सेवा में जुट गर्इं। इस प्रकार बहुत दिन बीत गए।
     एक दिन पार्वती की सेवा से प्रसन्न होकर शिव बोले-तुम्हें मनचाहा पति मिले। ऐसा पति जो तुमसे ही प्रेम करने वाला हो। वे खुश हो गई। इस बीच कामदेव ने मौका देखकर शिव पर तीर छोड़ दिया, जिससे उनके मन में प्रेम का भाव पैदा हो सके। परन्तु हुआ उलटा और शिव ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया। इसके बाद वे किसी अज्ञात स्थान पर चले गए। इससे पार्वती शोक में डूब गई। वे मन ही मन उन्हें अपना पति स्वीकार कर चुकी थीं। उन्होने निश्चय किया कि वे कठोर तपस्या से शिव को पाकर ही रहेंगी। सबसे पहले उन्होने अपने माता-पिता को समझा-बुझाकर इस बात के लिए राजी किया। इसके बाद वे तपस्या करने निकल पड़ीं। उन्होने तपस्विनी का वेश धारण कर लिया और हिमालय के एक शिखर पर जाकर तपस्या आरम्भ कर दी। उनका सुकोमल शरीर तप के योग्य नहीं था, लेकिन शिव प्राप्ति के लक्ष्य के आगे यह सब बातें गौण थीं। एक कन्या को यह सब करते देखकर ऋषि-मुनि आश्चर्य में पड़ जाते। धीरे धीरे उन्होने भोजन का त्याग कर दिया और बर्फ जैसे जलकुंड में बैठकर शिव का ध्यान करने लगीं। इस तरह कई वर्ष बीत गए। लेकिन पार्वती की हिम्मत नहीं टूटी।
     एक दिन जब पार्वती पूजा-अर्चना की तैयारी कर रही थीं कि एक ब्राहृचारी वहाँ आया। पार्वती ने उसका सत्कार किया। ब्राहृचारी बोला-देवी, मुझे तुम्हारे कठोर तप के बारे में पता चला। नारी होकर तुमने संसार के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया है। लेकिन तुमने इतना कठोर तप किया क्यों? इस पर पार्वती ने इशारे से अपनी सखी से उत्तर देने को कहा। सखी ने तप का कारण बताया। इस पर ब्राहृचारी हँस पड़ा और शिव के रहन-सहन वेशभूषा आदि के बारे में ऊटपटाँग बोलने लगा। शिव की निन्दा सुनकर पार्वती को क्रोध आ गया। वे बोली-तुम निश्चित ही मूर्ख हो, जो महादेव को नहीं पहचान पाए। वे न दिखावा करते हैं और न ही दिखावे से प्रभावित होते हैं। वे भोले हैं। और सबसे बड़ी बात वे जैसे भी हैं, मैं उनसे प्रेम करती हूँ। इसलिए आप उनके बारे में अब एक भी अनुचित शब्द नहीं कहेंगे। इसके बाद वे सहेली से बोलीं- बुरी बात कहना तो पाप है ही, उसे सुनना भी महापाप है। उसके बाद पार्वती ने जैसे ही जाने के लिए कदम बढ़ाया तो ब्राहृचारी ने आगे बढ़कर उनका रास्ता रोक लिया। पार्वती ने जैसे ही गुस्से में उसकी ओर देखा तो पाया कि वहां तो स्वयं शिव खड़े थे, जो ब्राहृचारी के वेश में पार्वती की परीक्षा लेने आए थे। वे बोले-सुकुमारी, तुम्हारी तपस्या और भक्ति ने मुझे जीत लिया। आज मैं तुम्हारा सेवक हूँ। मुझसे विवाह करोगी। यह सुनकर पार्वती लजा गर्इं। वे अपनी सखी से बोलीं- इनसे कहो कि ये मेरे माता-पिता के सामने विवाह का प्रस्ताव रखें। वे ही इस बात का निर्णय कर सकते हैं। शिव बोले-प्रिये, मैं इसमें तनिकभी देरी नहीं लगाऊँगा। इसके बाद उन्होने हिमवंत के पास विवाह प्रस्ताव भिजवाया। हिमवंत भी यही चाहते थे। वे तुरंत तैयार हो गए। सभी ओर प्रसन्नता छा गई। उचित समय पर विधिपूर्वक शिव-पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ, जिसमें स्वजनों के अलावा तीनों लोकों के अतिथि शामिल हुए।
     दोस्तो, यही है खुशियां मनाने का सही तरीका। आप खुशियां तब तक पूरी तरह नहीं मना सकते जब तक कि उनमें आपके अपने प्रियजन व मित्र सम्मिलित न हों। पार्वती ने अपने मनचाहे वर को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की, लेकिन जब तपस्या सफल हो गई तो अपनी खुशियों में उन्होने अपने माता-पिता को शामिल कर उन्हें अपेक्षित सम्मान दिया। हालांकि वे पहले से यही चाहते थे, लेकिन बेटी द्वारा अपनी भावनाओं का ख्याल रखे जाने से उन्हें अधिक खुशी हुई होगी। यदि हर बच्चा यही आचरण अपनाए तो शायद ही किसी माता-पिता को उनकी खुशियों में शामिल होने में परेशानी हो। हम बात कर रहे हैं उन बच्चों की, जो अपनी मर्ज़ी से जीवन साथी का तो चयन करते हैं लेकिन प्रियजनों की भावनाओं का ख्याल नहीं रखते। इसका परिणाम भविष्य में उन्हें नकारात्मक ही मिलता है। इसलिए हमें हमेशा अपने परिजनों की भावनाओं और सम्मान का ध्यान रखना चाहिए। ये छोटी-छोटी बातें हैं लेकिन इन बातों का ध्यान रखने से हम कई बड़े तनावों से बच जाते हैं।

1 comment:

  1. बहुत ही सही बात कही है आपने- "यही है खुशियां मनाने का सही तरीका। आप खुशियां तब तक पूरी तरह नहीं मना सकते जब तक कि उनमें आपके अपने प्रियजन व मित्र सम्मिलित न हों."

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