पहलवानी सीख रहे शागिर्दों में से एक शागिर्द उस्ताद का बहुत चहेता था। वह उस्ताद की सारी बातें मानता था। और उसके अंदर सीखने की भी बहुत ललक थी। इस सबके चलते उस्ताद ने उसे सारे दाँव-पेंच सिखा दिए, जिनके सहारे जल्द ही उसने पहलवानी की दुनियाँ में खूब नाम कमा लिया। वह देखते ही देखते चुटकियों में अपने प्रतिद्वंद्वी को धूल चटा देता था। इससे उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।
इससे प्रभावित होकर बादशाह ने उसे मिलने के लिए बुलाया। शुरुआती गुफ्तगू के बाद वह बादशाह से बोला- हुज़ूर! आज पूरी दुनियाँ में कोई पहलवाल मेरे सामने नहीं ठहरता।' बादशाह ने पूछा, "क्या वाकई में ऐसा है?' शागिर्द बोला- हाँ।' बादशाह ने पूछा- क्या तुम्हारे उस्ताद भी नहीं?' शागिर्द ने जवाब दिया," हाँ वे भी नहीं।' बादशाह ने कहा," क्या तुमने कभी उस्ताद से मुकाबला किया है?' शागिर्द ने कहा, "नहीं। लेकिन जब दुनियाँ के बड़े-बड़े बल्लम मेरे सामने नहीं टिके तो वे कैसे टिक पाएँगे।' शागिर्द की बातें सुनकर बादशाह समझ गए कि इसे अपनी कामयाबी का गुरूर हो गया है। वे बोले- हम तुम्हें नूर-ए-मुल्क का खिताब देना चाहते हैं। लेकिन इसके लिए तुम्हें अपने उस्ताद को पछाड़ना होगा।' शागिर्द तैयार हो गया। दंगल वाले दिन सभी एक मैदान में जमा हो गए। सबको यकीन था कि शागिर्द के आगे उस्ताद ठहर नहीं पाएगा। देखते ही देखते दोनों भिड़ गए। लेकिन ये क्या! उस्ताद ने एक दाँव मारा और शागिर्द चारों खाने चित्त। सभी दर्शक हैरानी से उसे धूल चाटते हुए देखने लगे। बादशाह खुशी से नाच उठा, क्योंकि उसे भरोसा था कि ऐसा ही होगा। इस पर उस्ताद बादशाह से बोला- हुज़ूर! इस हार में इसकी नहीं, मेरी ही गलती है, क्योंकि यह दाँव मैने अभी तक इसे सिखाया ही नहीं था। सच कहूँ तो आज के जैसे ही दिन के लिए बचा रखा था।' उस्ताद की बातें सुन शागिर्द पानी-पानी हो गया।
दोस्तो, इसीलिए कहते हैं कि उस्ताद से उस्तादी नहीं करनी चाहिए। क्योंकि करोगे तो नतीज़ा ऐसा ही रहेगा यानी मुँह की खाओगे। वह आपको एक ही दाँव में धूल चटा देगा, क्योंकि आप जो भी दाँव-पेंच जानते होंगे, वह आपने उसी से तो सीखे होंगे। जब वही दाँव आप उस पर आजमाएँगे तो वह तो पहले से ही उसके लिए तैयार रहेगा और आपका दाँव बेकार चला जाएगा। इसके बाद वह ऐसा दाँव मारेगा जो आप जानते भी नहीं होंगे और आप चारों खाने चित्त हो जाएँगे यानी नतमस्तक हो जाएँगे। इसलिए दुनियाँ से पंगा ले लो, लेकिन उससे कभी मत लो जिससे आपने सीखा हो, जो आपका गुरु हो। कहते भी हैं कि गुरु की विद्या गुरु पर नहीं चलाई जाती। इससे नुकसान आपका ही होता है। वैसे भी जिस गुरु से गुर सीखकर आप गुड़ से शक्कर हुए हैं, गुरूर में आकर यदि उसी गुरु पर गुर आजमाओगे तो सब गुड़-गोबर हो जाएगा।
हम यह बात बार-बार इसलिए दोहरा रहे हैं कि अकसर लोग यह बात भूल जाते हैं। कामयाबियाँ उनके सिर चढ़कर ऐसे बोलती हैं कि वे उनका सारा श्रेय खुद ही लेने लगते हैं। यहाँ तक कि कई बार वे अपने गुरु को ही नीचा दिखाने की सोचने लगते हैं। यदि आप भी ऐसा ही कुछ करते हैं और सोचते हैं कि आप अपने गुरु से बहुत आगे निकल चुके हैं, अब आपको किसी की ज़रूरत नहीं है, तो आप गलत हैं, क्योंकि ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं है। आज सब कुछ आपके पक्ष में जा रहा है तो कल विपरीत भी जा सकता है। तब ऐसी परिस्थितियाँ खड़ी हो सकती हैं, जिनसे निपटने का आपको अनुभव नहीं होता है। ऐसे में एक गुरु, गाइड या उस्ताद ही आपके काम आता है। श्री कबीर साहिब जी ने कहा भी है- “
कबिरा ते नर अंध हैं, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।।
अर्थात् वे लोग अंधे हैं, अज्ञानी हैं, जो गुरु को ईश्वर से कमतर आँकते हैं, जबकि ईश्वर के रूठने पर तो गुरु का आसरा मिल जाता है, लेकिन यदि गुरु रूठ जाए तो कहीं भी आसरा नहीं मिलता। और आपको ऐसे अनेक लोग मिल भी जाएँगे, जो अपनी ऐसी ही गलती की सजा भुगत रहे होंगे। यानी जिन्होंने उसी को डुबाने की कोशिश की होगी, जिसने उन्हें तैरना सिखाया। इस तरह अपनी मूर्खता के चलते वे खुद ही डूब गए। इसलिए आप कितने भी आगे बढ़ जाएँ, कभी खुद को अपने गुरु से बेहतर, उससे आगे न समझें, क्योंकि ऐसा हो ही नहीं सकता।
Mere gurumaharaj ji ke niyam nibao mauja he mauja hai...
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